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Dear sir, Welcome You tube channel ( worldwide YouTube Channel) My name is Sandeep Kumar I am Graduate , Jaipur university, Rajasthan, India. I am leaving in Ahmedabad. I am Business man, my business name is GMR Enterprises. Thanks n Regards, Sandeep Kumar.

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Friday, 31 August 2018

Vivekananda विवेकानंद के अनमोल वचन


                              जितना कठिन संघर्ष होगा

                              जीत उतनी ही शानदार होगी

                              एक अच्छे चरित्र का निर्माण

असंभव की सीमा से आगे निकल जाना

चिंतन करो, चिंता नहीं ,

नए विचारों को जन्म दो

                संभव की सीमा को जानने का सबसे उत्तम तरीका है

                असंभव की सीमा से आगे निकल जाना

सभी को मरना है, सज्जन भी मरेंगे और दुर्जन भी मरेंगे, गरीब भी मरेंगे और अमीर भी मरेंगे इसलिए निष्कपट होकर जीवन जियो

जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे

Swami Vivekananda Vichar Quotes


जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे

Thoughts of Swami Vivekananda in Hindi

जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते, आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते

Hindi Quotes by Swami Vivekananda

एक शब्द में कहें तो तुम ही परमात्मा हो

Swami Vivekananda Ji Quotes

दान सबसे बड़ा धर्म है

नर सेवा – नारायण सेवा

ज्ञान का दान ही सबसे उत्तम दान है

स्वामी विवेकानंद के विचार

उठो जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये तब तक मत रुको

स्वामी विवेकानंद प्रेरक विचार

धन अगर अच्छाई के लिए उपयोग ना किया जाये तो ये बुराई की जड़ बन जाता है

स्वामी विवेकानंद अनमोल विचार

एक समय में एक ही काम करो और पूरी निष्ठां और लगन से करो बाकि सब कुछ भुला दो

स्वामी विवेकानंद के सुविचार

डर कमजोरी की सबसे बड़ी निशानी है

महान कार्य के लिए महान त्याग करने पड़ते हैं

खुद को कमजोर मान लेता बहुत बड़ा पाप है

आत्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं

विवेकानंद के अनमोल वचन

महात्मा वो है, जो गरीबों और असहाय के लिए रोता है अन्यथा वो दुरात्मा है

स्वामी विवेकानंद के कथन

बह्माण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे अंदर निहित हैं और ये हम ही हैं जो अपनी आखों पर पट्टी बांधकर अंधकार होने का रोना रोते हैं

स्वामी विवेकानंद के अनमोल कथन

परोपकार धर्म का दूसरा नाम है
परपीड़ा सबसे बड़ा पाप

स्वामी विवेकानंद की उक्तियाँ

वही लोग अच्छा जीवन जीते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं

विवेकानंद की कही उक्तियाँ

राम राम करने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता। जो प्रभु की इच्छानुसार काम करता है वही धार्मिक है

Suvichar of Swami Vivekananda

ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है

Thoughts of Swami Vivekanand

जिस पल आपको यह पता चल जायेगा कि ईश्वर आपके भीतर है। उस पल से आपको प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर की छवि नजर आने लगेगी

Quotes of Swami Vivekanand Ji

तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है

Swami Vivekananda Ke Vichar

जीवन में एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति ये अनुभव करता है कि
दूसरे मनुष्यों की सेवा करना, लाखों जप तप के बराबर है

Swami Vivekananda Inspiring Thoughts

दिन में कम से कम एकबार खुद से जरूर बात करें
अन्यथा आप एक उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ एक बैठक गँवा देंगे

Swami Vivekananda Thoughts in Hindi

कोई और तुम्हारी मदद नहीं कर सकता, अपनी मदद स्वयं करो
आप ही खुद के सबसे अच्छे मित्र हैं और सबसे बड़े दुश्मन भी

Swami Vivekananda Ke Vachan

अपने जीवन में एक लक्ष्य बनाओ
और तब तक प्रयास करो जब तक वो लक्ष्य हासिल ना हो जाये
यही सफलता का मूल मन्त्र है

Swami Vivekananda Status in Hindi

तुम्हें भीतर से जागना होगा
कोई तुम्हें सच्चा ज्ञान नहीं दे सकता
तुम्हारी आत्मा से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है

Swami Vivekananda Thoughts on Success

जिस समय पर आप जिस काम की प्रतिज्ञा करते हैं
उसे उसी समय पर पूरा कीजिये अन्यथा लोगों का विश्वास उठ जायेगा

Motivational Swami Vivekananda Thoughts

वे अकेले रहते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं
बाकि जिन्दा से ज्यादा मरे हुए हैं

Swami Vivekananda Anmol Thoughts

पवित्रता, धैर्य और दृंढता
ये तीनों सफलता के लिए आवश्यक हैं
और प्यार सबसे ऊपर है

Swami Vivekananda Prerak Quotes

वे लोग धन्य हैं
जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं
और प्यार सबसे ऊपर है

स्वामी विवेकानंद हिंदी कोट्स

शक्ति जीवन है,
निर्बलता मृत्यु है,
विस्तार जीवन है,
संकुचन मृत्यु है,
प्रेम जीवन है
और द्वेष मृत्यु है

स्वामी विवेकानंद हिंदी उक्तियाँ

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जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो

स्वामी विवेकानंद विचार

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तुम मुझे पसंद करो या मुझसे नफरत, दोनो ही मेरे पक्ष में हैं
अगर तुम मुझको पसंद करते हो तो, मैं आपके दिल में हूँ,
और अगर तुम मुझ से नफरत करते हो , तो मैं आपके मन में हूं
जब तक जीवन है, सीखते रहो क्यूंकि अनुभव ही सबसे श्रेष्ठ शिक्षक है

असली सम्राट



अद्भुत कथा हैएक सम्राट था । आकंठ चिंता में डूबा हुआ। राज्य की चिंता। राजस्व की चिंता। शत्रुओं की चिंता। वर्षा न हुई तो अकाल की चिंता। बारिश ज्यादा हो गई तो बाढ़ की चिंता। मूर्ख दरबरीयो की चिंता। और सबसे अधिक घर के भेदीयो की चिंता। कहीं सिंहासन न झटक लें ।  चिंताओं से पीछा छुड़ाने को पर्वतों की ओर निकल गया। जैसे आजकल पैसे वाले   'हिल स्टेशन' छुट्टी मनाने निकल जाते हैं।

 लेकिन चिंताओं को छोड़कर भागना तो चिंता छोड़ कर भागने से भी ज्यादा मुश्किल है। राजा जंगल में भागा चला जा रहा था कि उसे बांसुरी के मोहक स्वर सुनाई दिये। पास जाकर देखा तो शीतल पहाड़ी झरने के पास, सघन वृक्षारोपण की छांह तले एक युवा चरवाहा बांसुरी बजा रहा था। मधुर सुरों से मुग्ध सम्राट बोला- तू तो ऐसा आनंदित हो रहा है जैसे तुझे कोई साम्राज्य मिल गया हो। चरवाहा हंसा, बोला- ईश्वर मुझ पर कृपा करें और मुझे साम्राज्य न दे लेकिन अभी तो मैं सम्राट हूं। साम्राज्य मिलने से कोई भी सम्राट नहीं रह जाता है।
 सम्राट हैरान। परेशान सर्वर में पूछा- तू निर्धन कंगाल। किराए के पशु चरा रहा है। बंता तो सही कि तू कैसे सम्राट हुआ? चरवाहा बोला- संपत्ति से नहीं, स्वतंत्रता से व्यक्ति सम्राट होता है। मेरे पास तो कुछ भी नहीं, सिवा स्वयं के। मेरे पास मैं हूं और इससे बड़ी संपदा करता हो सकती है। सोचता हूं कि मेरे पास करता नहीं है जो सम्राट के पास है। इस धरती का सौंदर्य देखने को आंखें हैं। प्रेम करने के लिए हृदय है। सूरज मुझे और सम्राट को बराबर रोशनी देता है।। चांद की चांदनी मुझ पर भी उतनी ही बरसती हैं जितनी सम्राट पर। फूल मेरे लिए भी खिलते हैं। सम्राट भी मनपसंद भर पेट खाता है और मैं भी। सम्राट भी अपना तन ढकता है और मैं भी। लेकिन सम्राट के पास एक चीज ज्यादा है जो मेरे पास नहीं है।

   सम्राट ने उत्सुकता से पूछा- क्या? चरवाहे ने कहा- चिंताएं। लेकिन चिंताओं से भगवान बचाए। लेकिन कुछ चीजें जो मेरे पास है वे सम्राट के पास नहीं है जैसे मेरी स्वतंत्रता, मेरी आत्मा, मेरा आनंद, मेरा संगीत। मेरे पास जो भी है मैं उसमें भरपूर आनंद उठाया हूं इसलिए मैं सम्राट हूं। सम्राट चरवाहे की बात सुनकर अश्रु भरे नेत्रों से बोला- सही कहा युवक। तुम असली सम्राट हो। कहानी खत्म, पैसा हजम
      अब आप ही बताइएगा हुजूर आला। करता आप सम्राट हैं?   करता आप अपने मालिक हैं? करता आप वह हर काम कर सकते हैं जो करना चहाते हैं?  करता आपको अपनी बात खुलकर कहने का हक है। जनाबे आली। अगर इनमें से एक भी प्रश्न का उत्तर 'हां' हैं तो आप सचमुच सम्राट हैं। और नहीं तो भाईसाब।इस दुनिया में करोड़ों- अरबों- खरबों इंसान और कीड़े मकोड़े रहते हैंआप भी उनमें से ही एक हैं।

GAYATRI MAHAMANTRA


Hindi

गायत्री Mahamantra एक महत्त्वपूर्ण  Mantra है जिसकी महत्ता  ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह Yajurveda  के मंत्र। ॐ  भूभुर्वःस्वः  और  Rig veda  के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे न श्रीगायत्री देवी के स्त्री रुप मे भी पुजा जाता है।
'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंनदो में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री) अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:
तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो : प्रचोदयात्। (ऋग्वेद ,६२,१०)


गायत्री महामंत्र[संपादित करें]

ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी में भावार्थ 
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

परिचय[संपादित करें]

यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के १८ मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के १० सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में २४ अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:
(१) ॐ
(२) भूर्भव: स्व:
(३) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है।
गायत्री तत्व क्या है और क्यों इस मंत्र की इतनी महिमा है, इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है। आर्ष मान्यता के अनुसार गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मानव जीवन, एक ओर देवतत्व और दूसरी ओर भूततत्त्व, एक ओर मन और दूसरी ओर प्राण, एक ओर ज्ञान और दूसरी ओर कर्म के पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या कर देती है। इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है। जाग्रत् में सवितारूपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव है वैसे मन भी देव है (देवं मन: ऋग्वेद, १,१६४,१८)। मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र को इष्ट है। सविता मन प्राणों के रूप में सब कर्मों का अधिष्ठाता है, यह सत्य प्रत्यक्षसिद्ध है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथों की व्याख्या है-कर्माणि धिय:, अर्थातृ जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं वह केवल मन के द्वारा होनेवाले विचार या कल्पना सविता नहीं किंतु उन विचारों का कर्मरूप में मूर्त होना है। यही उसकी चरितार्थता है। किंतु मन की इस कर्मक्षमशक्ति के लिए मन का सशक्त या बलिष्ठ होना आवश्यक है। उस मन का जो तेज कर्म की प्रेरण के लिए आवश्यक है वही वरेण्य भर्ग है। मन की शक्तियों का तो पारवार नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय अंश है। अतएव सविता के भर्ग की प्रार्थना में विशेष ध्वनि यह भी है कि सविता या मन का जो दिव्य अंश है वह पार्थिव या भूतों के धरातल पर अवतीर्ण होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो। इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई जाती। यहाँ एक मात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता का ज्ञान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थक करे।
गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं। भू पृथ्वीलोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। भुव: अंतरिक्षलोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। स्व: द्युलोक, सामवेद, आदित्यदेवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है। इस त्रिक के अन्य अनेक प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, किंतु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह ॐ संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है। अ, उ, म इन तीनों मात्राओं से ॐ का स्वरूप बना है। अ अग्नि, उ वायु और म आदित्य का प्रतीक है। यह विश्व प्रजापति की वाक है। वाक का अनंत विस्तार है किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त नमूना लेकर सारे विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा जिसका स्फुट प्रतीक त्रिपदा गायत्री है।

विविध धर्म-सम्प्रदायों मे गायत्री महामंत्र का भाव[संपादित करें]

हिन्दू - ईश्वर प्राणाधार, दुःखनाशक तथा सुख स्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।
यहूदी - हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर, मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
शिंतो - हे परमेश्वर, हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे में अभद्र बातों का अनुभव न हो।
पारसी - वह परमगुरु (अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ऋत तथा सत्य के भंडार के कारण, राजा के समान महान है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
दाओ (ताओ) - दाओ (ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उ8ाम धर्म है।
जैन - अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार।
बौद्ध धर्म - मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
कनफ्यूशस - दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो, जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
ईसाई - हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल, परन्तु बुराई से बचा क्योंकि राज्य, पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
इस्लाम - हे अल्लाह, हम तेरी ही वन्दना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा, उन लोगों का मार्ग, जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
सिख - ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है। वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, र्निवैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरु की कृपा से जाना जाता है।
बहाई - हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तुझे पहचानने तथा तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटों से तारनहार तथा स्व निर्भर।

गायत्री उपासना का विधि-विधान[संपादित करें]

उपासना का विधि-विधान इस प्रकार है -गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है। हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकाण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है। तीन माला गायत्री मंत्र का जप आवश्यक माना गया है। शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए।
(१) ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है। इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं।
(अ) पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
(ब) आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए।
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
(स) शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे। निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
(द) प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए।
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।
(य) न्यास - इसका प्रयोजन है-शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके। बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें।
ॐ वां मे आस्येऽस्तु। (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)
आत्मशोधन की ब्रह्म संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि सााधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो। पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं।
(२) देवपूजन - गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है। उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें। भावना करें कि साधक की प्रार्थना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापित हो रही है।
ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि।
(ख) गुरु - गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है। सद्गुरु के रूप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिवंदन करते हुए उपासना की सफलता हेतु गुरु आवाहन निम्न मंत्रोच्चारण के साथ करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
(ग) माँ गायत्री व गुरु सत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापित करने हेतु पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है। इन्हें विधिवत् संपन्न करें। जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य प्रतीक के रूप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पाँचों को समर्पित करते चलें। जल का अर्थ है - नम्रता-सहृदयता। अक्षत का अर्थ है - समयदान अंशदान। पुष्प का अर्थ है - प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास। धूप-दीप का अर्थ है - सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य-परमार्थ तथा नैवेद्य का अर्थ है - स्वभाव व व्यवहार में मधुरता-शालीनता का समावेश।
ये पाँचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिए किये जाते हैं। कर्मकाण्ड के पीछे भावना महत्त्वपूर्ण है।
(३) जप - गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पंद्रह मिनट नियमित रूप से किया जाए। अधिक बन पड़े, तो अधिक उत्तम। होठ हिलते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें। जप प्रक्रिया कषाय-कल्मषों-कुसंस्कारों को धोने के लिए की जाती है।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं। दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि की स्थापना हो रही है।
(४) ध्यान - जप तो अंग-अवयव करते हैं, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है। साकार ध्यान में गायत्री माता के अंचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रूप से प्राप्त होने की भावना की जाती है। निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों को शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा रूपी अनुदान उतरने की भावना की जाती है, जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस क्रिया का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है।
(५) सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन-जप समाप्ति के पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है।
ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥
भावना यह करें कि जल आत्म सत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है।

इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए। जप के लिए माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिए। सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है।[1] मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है। माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें।

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