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Dear sir, Welcome You tube channel ( worldwide YouTube Channel) My name is Sandeep Kumar I am Graduate , Jaipur university, Rajasthan, India. I am leaving in Ahmedabad. I am Business man, my business name is GMR Enterprises. Thanks n Regards, Sandeep Kumar.

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Tuesday 4 September 2018

नारी के यौन शोषण की पौराणिक कथा

नारी के यौन शोषण की पौराणिक कथा


माधवी : पिता, तीन राजा और दो ऋषियों के शोषण की शिकार

राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को उसकी इच्छा के विरूद्ध अपने गुरु गालव को भेंट में दे दिया। यहीं से आरंभ होती है माधवी की बर्बादी की कथा। 


एक थी माधवी। बेहद खूबसूरत, अत्यंत आकर्षक। राजा ययाति की यह बेटी किसी गुण में कम नहीं थी।

राजाओं से प्राप्त घोड़ों को उसने अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा के रूप में दिया। 

ऋषि गालव ने माधवी को तीन राजाओं को एक-एक वर्ष के लिए भेंट में दे दिया। सिर्फ इसलिए कि उसे अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में मूल्यवान घोड़े देने थे। हर राजा से गालव ने 200 मूल्यवान घोड़े लिए। जबकि उसे कुल जमा 800 घोड़े देने थे। इधर हर राजा ने माधवी से संतान की उत्पत्ति की

माधवी विश्वामित्र के पास तब तक तक रही जब तक उसने एक पुत्र को जन्म नहीं दिया। 
जब विश्वामित्र को पुत्र की प्राप्ति हुई तब गालव ने माधवी को वापिस लेकर उसे उसके पिता ययाति को लौटा दिया क्योंकि अब माधवी उसके किसी काम की नहीं थी। 

बचे हुए 200 घोड़ों का इंतजाम नहीं हो सका तो गालव ने माधवी को ही विश्वामित्र को भेंट कर दिया।



'दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियाँ'

मन को छूने और मस्तिष्क पर छाप छोड़ने वाला कहानी संग्रह है 'दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियाँ'

जाने-माने पत्रकार मिलिंद खांडेकर ने हिंदी में एक पुस्तक लिखी और उसे नाम दिया " दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियाँ " । नाम से ही कोई भी आसानी से समझ जाएगा कि इस पुस्तक में 15 ऐसे दलित करोड़पतियों की कहानियाँ हैं जो प्रेरणा देती हैं ।
पुस्तक को पढ़ने के बाद इस बात का एहसास हो जाता है कि वाकई जिन दलित लोगों के बारे में इस पुस्तक में लिखा गया है उनकी अपनी-अपनी अलग अनोखी कहानी है और हर कहानी इंसान को शिक्षा और सन्देश देने का सामर्थ्य रखती है।
जिन दलितों के मेहनत और संघर्ष की कहानियाँ इस पुस्तक में लिखी गयी हैं उनमें अशोक खाड़े, कल्पना सरोज, रतिलाल मकवाना, मलकित चंद, सविताबेन कोलसावाला, भगवान गवई, हर्ष भास्कर, देवजी भाई मकवाना, हरि किशन पिप्पल , अतुल पासवान, देवकीनन्दन सोन , जेएस फुलिया , सरथ बाबू ,संजय क्षीरसागर और स्वप्निल भिंगरदेवे शामिल हैं।
अशोक खाड़े की कहानी पढ़ लेने के बाद लोगों में भी नयी उम्मीद जगती है। 1973 में जब अशोक 11वीं की बोर्ड की परीक्षा में बैठने जा रहे थे तब उनके पास पेन की निब बदलने के लिए चार आने नहीं थे। एक टीचर ने चार आने देकर पेन की निब बदलवा दी ताकि वे परीक्षा लिख सकें। लेकिन आज अशोक खाड़े करोड़ों रुपयों का कारोबार करने वाली कम्पनियों के माकिल हैं। एक बहुत बड़े आर्थिक साम्राज्य पर उनका शासन चलता है। अब अशोक अपने गाँव लक्ज़री कार में जाते हैं लेकिन लगभग 40 साल पहले वो इसी गाँव में बिना चप्पल के घूमा-फिरा करते थे।
महाराष्ट्र की कल्पना सरोज ने अपनी ज़िंदगी में छुआछूत, गरीबी, बाल-विवाह, घरेलु हिंसा और शोषण सब कुछ देखा है , खुद अनुभव भी किया है। वो इन सब का शिकार भी हुई हैं। उनके लिए तो एक समय हालात इतने बुरे हो गए थे कि उन्होंने ख़ुदकुशी की भी कोशिश की। लेकिन, जब उन्होंने ने एक बार संकल्प किया और ज़िंदगी की चुनातियों का पूरी ताकत लगाकर मुकाबला शुरू किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उनकी गिनती भारत के सफल उद्यमियों और उद्योगपतियों में होती है । अपनी कामयाबियों और समाज-सेवा के लिए उन्हें भारत सरकार ने "पद्मश्री" से सम्मानित किया है। '
गुजरात के रतिलाला मकवाना को इंडियन पेट्रोकेमिकल लिमिटेड (आईपीसीएल) के पेट्रोकेमिकल्स बेचने की एजेंसी मिली तो प्लास्टिक का सामान बनाने वाले उद्यमियों ने उनसे सामान खरीदने से मना किर दिया, क्योंकि वो दलित हैं। अपने संघर्ष के दिनों में उनके साथ सामाजिक रूप से काफी भेदभाव हुआ, लेकिन उन्होंने शिखर पर पहुंचने की अपनी धुन में हिम्मत नहीं खोयी। आज वे पेट्रोकैमिकल की ट्रेडिंग करने वाली कंपनी गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज के चेयरमैन हैं। उनकी कंपनी आईओसी और गेल इंडिया की डिस्ट्रीब्यूटर हैं। उनकी एक और कंपनी रेनबो पैकेजिंग हैं। दोनों कंपनियों का टर्नओवर 450 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
पंजाब के मलकित चंद ने जब होजरी बनाने का कारोबार शुरू किया तो उन्हें बाजार से 15-20 रुपए प्रति किलो महंगा कपड़ा खरीदना पड़ा था, क्योंकि वो दलित हैं। एक समय था जब मलकित चंद की माँ सिलाई कढ़ाई कर गुजारा किया करती थीं। आज हालात बदले हुए हैं। होजरी के लिए कपड़ा बनाने से लेकर सिलाई तक से जुड़े सारे कामों को अंजाम देने वाली उनकी अपनी कंपनियां है और ये भी करोड़ों रुपये का कारोबार कर रही हैं।
गुजरात की सविताबेन ने घर-घर जाकर कोयला बेचने से शुरूआत की थी। संयुक्त परिवार के भरण-पोषण में अपने पति की मदद करने के मकसद से उन्होंने कोयला बेचना शुरू किया था। आज सविताबेन स्टर्लिग सेरेमिक प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी की मालिक हैं। इस कंपनी की सलाना टर्न ओवर करोड़ों रूपये का है और ये घरों के फर्श पर लगने वाली टाइल्स बनाती है।
1964 में जब भगवान गवाई के पिता का आक्समिक निधन हो गया , तब उनकी माँ अपने चारों बच्चों को लेकर अपने गाँव से करीब ६०० किलोमीटर दूर मुंबई आ गयीं। मजदूरी कर अपने बच्चों का पालन -पोषण करने वाली इस माँ की एक संतान यानी भगवान गवाई ने आगे चलकर अपने परिश्रम और प्रतिभा के बल पर दुबई में अपनी कंपनी खोली। भगवान गवाई आज करोड़पति कारोबारी हैं।
हर्ष भास्कर आगरा के जिस परिवार में पैदा हुए उसमें पढ़ने-लिखने की परंपरा ही नहीं थी, लेकिन हर्ष के इरादे इतने बुलंद थे कि उसने आईआईटी जैसे देश के सबसे मशहूर संस्थान में दाखिला पाने में कामयाबी हासिल ही। उन्होंने आगे चलकर कोटा टूटोरियल की स्थापना की। ये ट्यूटोरियल आज हज़ारों विद्यार्थियों को बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थाओं में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा की तैयारी में कोचिंग से मदद करता है।
देवजी भाई मकवाना ने अपने अनपढ़ पिता से प्रेरणा लेकर कारोबार किया और करोड़ों के मालिक बने। देवजी भाई को लगा कि उनके पिता जब अनपढ़ होकर कारोबार कर सकते हैं तो वो पढ़-लिख कर उसने भी ज्यादा कारोबार कर सकते हैं।
हरि किशन पिप्पल ने शुरुआत की बैंक से १५ हज़ार का क़र्ज़ लेने के बाद। आज वो जूते-चप्पल बनाने वाली कंपनी के मालिक और करोड़ों में कारोबार कर रहे हैं।
अतुल पासवान डाक्टर बनना चाहते थे। मेडिकल की कोचिंग के दौरान अतुल मेढक का खून देखकर बेहोश हो गए। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वो कुछ और बनेंगे लेकिन डाक्टर नहीं। अतुल ने जापानी भाषा सीखी और इससे उनकी ज़िंदगी ही बदल गयी।
देवकीनन्दन सोन ने भी प्रतिभा की ताकत पर जूतों के कारोबार से शुरुआत कर आगरा में ताज महल के करीब होटल बनवाकर नयी बुलंदियां हासिल कीं।
सरथ बाबू का जन्म एक ऐसे गरीब परिवार में हुआ जहाँ माँ को अपने बच्चों को खाना देने के बाद खाने ले लिए कुछ भी नहीं बचता था। माँ को कई बार भूखा सोना पड़ा। माँ की तकलीफों को दूर करने का संकल्प लेकर सरथ ने जो कदम आगे बढ़ाये तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जेएस फुलिया ने मेहनत के जो रुपये एक कंपनी में निवेश किये थे वो कंपनी भाग गयी। फुलिया जातिगत भेद-भाव का भी शिकार हुए। लेकिन, हार ना मानने के उनके जज़्बे ने उन्हें कामयाबियां दिलाई।
संजय क्षीरसागर ने देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कहानियों से प्रेरणा ली और उन्हीं के रास्ते पर चल पड़े ।
स्वप्निल भिंगरदेवे को पिता के अपमान की एक घटना ने इतनी चोट पहुंचाई कि उन्होंने साबित कर दिखाया कि दलित भी कारोबार के क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ सकते हैं।
लेखक ने अपनी पुस्तक में इन पंद्रह दलितों की कहानी को विस्तार से लिखा है। उनके जीवन की महत्वपूर्ण और रोचक घटनाओं का सुन्दर वर्णन किया है। ये कहानियाँ यह दिखाती हैं कि किस तरह इन पंद्रह दलित शख्सियतों ने कैसे रोड़ से करोड़ों तक का, फर्श से अर्श तक का और संघर्ष से कामयाबी का सफर तय किया। ये 15 कहानियाँ अपने में सुख-दु:ख, उतार-चढ़ाव और संघर्ष-विजय के तमाम अलग-अलग रंग भी समेटे हुए हैं। कहानियाँ कुछ लोगों को फ़िल्मी या काल्पनिक भी जान पड़ सकती हैं, लेकिन सभी कहानियाँ सच्ची है और इनके किरदार लोगों की आँखों के सामने मौजूद हैं। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद एक और महत्वपूर्ण बात ये पता चलती है कि इन किरदारों के दलित होने की वजह से इन्हें समाज में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। छुआछूत, भेद-भाव, बहिष्कार , तिरस्कार जैसी कठोर परिस्थितयों का भी सामना करना पड़ा है। ये वो परिस्थितियां हैं अन्य बड़े नामचीन कारोबारियों के सामने कभी नहीं आईं। दलित होना भी इनकी कामयाबी में एक बड़ी अड़चन बनी। लेकिन, जिस तरह से इन पंद्रह लोगों ने अपने संघर्ष साहस और हौसले से विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, सभी अड़चनों और रुकावटों को दूर किया और कामयाबी हासिल की वो आज देश-भर में लोगों के सामने एक मिसाल और सबक के तौर पर मौजूद है। समाज के लिए इन जैसे लोग ही सच्चे और असली आदर्श हैं।
इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ने का सुझाव इस लिए दिया जाता है क्योंकि कहानियाँ भी सच्ची, दिलचस्प, अनूठी और प्रभावशाली हैं। मन को छूने वाली ये कहानियाँ मस्तिष्क पर भी गहरी छाप छोड़ती हैं। और तो और आम लोगों की नज़र से भी पुस्तक की भाषा आसान है।
बात अगर लेखक की करें तो मिलिंद खांडेकर लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े हैं। आज तक, स्टार न्यूज़ जैसे लोकप्रिय समाचार चैनलों में वे बड़े पदों पर कार्यरत रहे हैं।
वे इंदौर में पले-बढे़ और उन्होंने देवी अहिल्या विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई की। उन्होंने टाइम्स सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज से प्रशिक्षण लिया और 1991 में उन्हें हिंदी में शानदार प्रशिक्षु के लिए ‘राजेंद्र माथुर सम्मान’ मिला।
पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें करीब 2२५ सालों का अनुभव है। फिलहाल वे नोएडा में मीडिया कंटेंट ऐंड कम्युनिकेशंस सर्विसेज (आई) प्रा.लि. (एमसीसीएस), मुंबई के प्रबंध संपादक हैं, जिनके तहत एबीपी न्यूज, एबीपी आनंदा और एबीपी माझा न्यूज चैनल आते हैं।
अंग्रेजी पाठकों की सुविधा के लिए " दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियाँ " का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है। ये किताब अग्रेज़ी में "दलित मिलियनियर - फिफ्टीन इंस्पायरिंग स्टोरीज़" के नाम से उपलब्ध है।
यदि आपके पास है कोई दिलचस्प कहानी या फिर कोई ऐसी कहानी जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो आप हमें लिख भेजें eपर। साथ ही सकारात्मक, दिलचस्प और प्रेरणात्मक कहानियों के लिए हमसे  web site पर भी जुड़ें...

Monday 3 September 2018

डायनासोर: कितना जानते हैं आप इसके बारे में?

डायनासोर के बारे में सुन-सुनकर और हॉलीवुड की बेहतरीन फिल्में देख-देखकर एक पीढ़ी बड़ी हुई है. 1993 में आयी पहली ‘जुरासिक पार्क’ फिल्म के बाद अब तक आयी कुल चार फिल्में सुपर डुपर हिट रही हैं, तो 2018 में इस सीरीज की फालेन किंगडम का इसके फैंस बेसब्री से इन्तजार कर रहे होंगे!
इसके अतिरिक्त, दुनिया में सर्वाधिक जिन विषयों पर किताबें बिकी हैं, उसमें डायनासोर्स पर लिखी किताबें भी शामिल हैं.
जाहिर तौर पर डायनासोर और उनकी कहानी लोगों को जबरदस्त ढंग से अपनी ओर खींचती रही है. अभी हाल ही में साइंटिस्ट्स के एक ग्रुप ने पुर्तगाली समुद्र तट के पास ‘फ्रिल्ड शार्क’ नामक एक ऐसी मछली की खोज की है, जिसे डायनासोर के काल का माना जा रहा है.
इस विषय पर अब तक हुई शोध और फ़िल्मी कल्पनाओं की उड़ान ने इस सम्बन्ध में एक नयी हलचल उत्पन्न की है, इस बात में दो राय नहीं. इस सम्बन्ध में कुछ एक रोचक तथ्यों को समझना दिलचस्प रहेगा…

तो अभी जीवित हैं डायनासोर्स?

इन विशालकाय डायनासोर्स के बारे में सामान्य धारणा यह है कि यह पूरी तरह विलुप्त हो गए हैं, किन्तु कुछ शोधों के अनुसार बताया गया है कि डायनासोर अभी विलुप्त नहीं हुए हैं. जी हाँ, पृथ्वी पर उनकी करीब 10,000 स्पीसीज आज भी मौजूद हैं, जो कि बर्ड्स के रूप में हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और रॉयल ऑन्टेरियो म्यूजियम की एक टीम डायनासोर की 426 स्पीसीज के पैरों की हड्डियों का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं. इसी रिसर्च के मुताबिक, तमाम दूसरे जीवों की तरह डायनासोर भी अपनी उत्पत्ति के कुछ समय बाद (करीब 220 करोड़ साल पहले ही) अपने बॉडी को बदलने की प्रक्रिया शुरू कर चुके थे.
शोध यह भी कहता है कि बाद में बदलाव का सिस्टम स्लो हो गया, किन्तु जिन स्पीसीज की बनावट बर्ड्स के करीब थी, उनमें यह डेवलपमेंट कंटिन्यू रहा, जो अगले 170 करोड़ वर्षो तक अनवरत चला.
जाहिर तौर पर तमाम प्रजातियों की विलुप्ति के बावजूद आज भी यह हमारे बीच मौजूद हैं.

डायनासोर्स के नष्ट होने की थियरी!

इस विषय पर कई शोध सामने आये हैं, लेकिन कोलकाता के शंकर चटर्जी जो अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी में भू-तत्व के प्राध्यापक हैं, उनकी थियरी काफी नयी बतायी जा रही है.
डायनासोर्स के नष्ट होने पर मिस्टर चटर्जी ने पोर्टलैंड में जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ अमेरिका के एनुअल फोरम में अपनी बातें तमाम वैज्ञानिकों के सामने रखीं. इसके अनुसार, स्पेस से तकरीबन 40 किलोमीटर के व्यास वाला एक पिंड पृथ्वी से इंडिया के ही हिस्से में आ टकराया था, जिससे हाइड्रोजन बम विस्फोट से 10 हजार गुना अधिक असर हुआ.
इसके फलस्वरूप, सुनामी के साथ साथ अर्थ पर कई ज्वालामुखी फट पड़े.
तत्पश्चात, महीनों तक आसमान में गैस की परतें और अँधेरा छाया रहा. जाहिर तौर पर सूर्य की रौशनी पृथ्वी तक नहीं पहुँच सकी और गंभीर फ़ूड क्राइसिस उत्पन्न हो गयी.

डायनासोर्स से जुड़े ‘अन्य’ रोचक फैक्ट्स

–अक्सर ऐसा कहा जाता है कि दुनिया में डायनासोर ही पहले जीव थे, जबकि इनसे भी पहले कुछ जीवों का अस्तित्व था. इसमें अर्चोसौर्स (भीमकाय लिज़र्ड) और पेलीकोसौर्स जैसे नाम लिए जा सकते हैं, जो डायनासोर्स से तकरीबन 20 मिलियन वर्ष पहले धरती  मौजूद थे.
–डायनासोर नाम की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द से हुई है. इसके अनुसार, खतरनाक लिज़र्ड का बोध होता है. वैसे इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने किया था.
–इतने पहले का जीव होने के बावजूद बोलीविया में डायनासोर्स के फुट-प्रिंट सामने आने की बात कही गयी. मतलब हड्डियों और दाँतों तक तो ठीक है, लेकिन फुटप्रिंट मिलना आश्चर्य तो पैदा करता ही है, पर यह सच है.
–कुछ रिसर्च में यह भी दावा किया गया है कि कुछ डायनासोर्स की उम्र 70-300 साल के बीच होती थी. और हाँ, डायनासोर को बेशक सबसे बड़ा माना जाता हो, किन्तु ब्लू व्हेल उससे बड़ी जीव है जो आज भी मौजूद है.
डायनासोर्स का अस्तित्व धरती के सभी महाद्वीपों में था, यहाँ तक कि अंटार्टिका तक में.
–मोसेसौर्स, इचथ्योसॉर्स, पटेरोसौर्स, प्लेसिओसॉरस और डिमेट्रोडों को भी सामान्यतः डायनासोर्स ही समझा जाता है, किन्तु हकीकत यह है कि सिर्फ थल पर रहने वाले इन जीवों को ही डायनासोर्स कहा जाता है.
–सामान्यतः डायनासोर्स को प्रकृति के साथ संतुलन न बिठा पाने के कारण लुप्तप्राय माना जाता है, किन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने धरती पर 165 मिलियन वर्षों तक राज किया, जबकि इंसानों का युग अधिकतम 2 मिलियन वर्ष ही माना जाता है.
–आपने किन्हीं कॉमिक्स में ही ठंडा खून रखने वाले किसी प्राणी के बारे में पढ़ा होगा, किन्तु वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ डायनासोर्स भी कोल्ड-ब्लडेड थे तो बाकी वार्म-ब्लडेड.
–और लास्ट, बट नॉट लिस्ट इनफार्मेशन यह कि अधिकांश डायनासोर्स वेजीटेरियन थे.
और भी तमाम इनफार्मेशन इन विशालकाय जीवों के बारे में बतायी जा सकती है, तो आने वाले सालों में इनके बारे में लोगों की रुचि और भी बढ़ती ही जाएगी, इस बात में दो राय नहीं!
पर महत्वपूर्ण यह है कि उनके युग से मनुष्य क्या कुछ सीख सकता है और कैसे अपने काल को बेहतर कर सकता है, किस प्रकार प्रकृति के साथ संतुलन के नियम को वह साध सकता है.आप क्या सोचते हैं इन डायनासोर्स के बारे में?

पहली बार ड्यूटी पर पिता-बेटी को हुआ आमना-सामना, पिता ने बेटी को ठोका सैल्यूट

proud father salutes daughter police officer पिता डीसीपी और बेटी आईपीएस। ड्यूटी में पहली बार दोनों का आमना-सामना हुआ। बड़ा पद होने की वजह से पिता ने बेटी को सैल्यूट मारा। ये लम्हा पिता के लिए जितने गर्व का था उतना ही वहां मौजूद लोगों के लिए भी। मामला हैदराबाद के पास कोंगरा कलां का है, यहां टीआरएस की जनसभा थी। इसलिए पिता और बेटी दोनों की यहां पर तैनाती थी।

सत्यभामा को करना पड़ा अपने ही पति श्री कृष्ण का दान


ऐसा क्या हुआ कि सत्यभामा को करना पड़ा अपने ही पति श्री कृष्ण का दान



श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं से सभी का मन मोहा है| कृष्ण की 16008 बीवियाँ थीं जिनमे से 8 को रानी का दर्जा मिला, इन 8 रानियों को अष्टभार्य कहा गया| इन 8 रानियों में से पहली दो रानियों का नाम रुक्मिणी और सत्यभामा था| दोनों रानियां श्री कृष्ण से बहुत प्रेम करती थीं तो ऐसा क्या हुआ कि सत्यभामा ने श्री कृष्ण को दान कर दिया| आइये जानते हैं:-
इस प्रसंग को तुलाभ्राम कहा गया है| हुआ कुछ इस तरह कि सत्यभामा को घमंड था कि कृष्ण उनसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं| जब यह बात नारद मुनि को पता चली तो उन्होंने इस घमंड को खत्म करने का निश्चय किया क्योंकि वे जानते थे कि कृष्ण से सबसे अधिक और सच्चा प्रेम रुक्मिणी करती हैं|
नारद मुनि द्वारका पहुंचे और अपनी लीला शुरू की| उन्होंने सत्यभामा को अपनी बातों के जाल में फंसाया और कहा कि तुलाभ्राम व्रत करने से कृष्ण और आपके बिच का प्रेम कई गुणा बढ़ जाएगा| इस व्रत में उन्हें नारद जी को कृष्ण का दान करना होगा और फिर से वापिस पाने के लिए उन्हें कृष्ण के वज़न के बराबर के स्वर्ण नारद जी को दान में देने होंगे| अन्यथा कृष्ण हमेशा के लिए उनके गुलाम बन जाएंगे|
सत्यभामा को उसके पिता के पास रखी हुई स्यमन्तक मणी का ध्यान आया जो सूर्य देव से प्राप्त हुई थी| यह मणी रोज़ एक किलो सोना देती थी| सत्यभामा को नारद मुनि ने संकेत भी दिया कि वह इतना धन नहीं दे पाएंगी पर सत्यभामा ने व्रत के लिए हामी भर दी|
सभी रानियों के निवेदन करने के बावजूद सत्यभामा ने यह व्रत किया और नारद जी को कृष्ण का दान कर दिया| सत्यभामा ने स्वर्णों को एकत्रित करना शुरू किया| फिर एक तुला मंगवाई गयी जिसके एक पलड़े पर कृष्ण बैठे और दूसरे पलड़े पर सत्यभामा की सम्पत्ति रखी गयी| परन्तु वह स्वर्ण थोड़े रह गए, तभी सत्यभामा ने अन्य रानियों से मदद मांगी| सभी ने अपने आभूषण तथा सम्पत्ति दे दी परन्तु सारे स्वर्ण मिलकर भी श्री कृष्ण के भार से कम निकले| कृष्ण वहाँ मौन बैठे रहे जो सत्यभामा के घावों पे नमक की तरह लगा|
तभी नारद जी ने सत्यभामा को सुझाव दिया कि रुक्मिणी शायद कुछ कर सकतीं हैं| सत्यभामा को डर लगने लगा की अगर नारद जी को दान में दिए कृष्ण को वापिस न लाया गया तो सभी रानियों को कृष्ण से बिछड़ने का दुःख सहना पड़ेगा| सत्यभामा ने तब अपने घमंड को हटा कर रुक्मिणी से मदद मांगी|
रुक्मणि ने आकर कृष्ण का ध्यान लगाया और पूजनीय तुलसी का एक पत्ता उन स्वर्णों को हटा कर तुला पर रखा| उस तुलसी के पत्ते से कृष्ण का पलड़ा हल्का हो गया और अंत में सत्यभामा ने कृष्ण, रुक्मणि और नारद जी से माफ़ी मांगी|
इस प्रसंग से हमें ये सीख मिलती है कि भगवान किसी सांसारिक वस्तु से कभी खुश नहीं हो सकते| भगवान को प्रसन्न सिर्फ एक चीज़ कर सकती है वो है सच्चा प्रेम जो रुक्मिणी का कृष्ण के लिए था|

जानिए क्यों हुआ था कृष्ण का जन्म?


जन्माष्टमी 2018: जानिए क्यों हुआ था कृष्ण का जन्म?  

 भगवान कृष्ण के प्रेम रस से रोम रोम रससिक्त कर धन्य हुए भारत देश ने उनकी एक-एक लीला को अपने हृदय में बसाया है। हमारे देश के जन- जन में राम और कण-कण में कृष्ण बसते हैं। कृष्ण का प्रेम इतना अधिक मानवीय था, उनकी लीलाएं इतनी सहज थीं कि वे स्वयं प्रेम का पर्याय बन गए। 
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जन्माष्टमी :-  श्री कृष्ण का पूजन चाहे माता-पुत्र का निर्मल प्रेम हो या प्रेमी-प्रेमिका का रोमांचक प्रेम, चाहे भाई-भाई का नटखट प्रेम हो या पुत्र की प्रतीक्षा में आंखें पथरा देने वाले माता-पिता का अविरत प्रेम, चाहे पति-पत्नी का अंतहीन प्रेम हो या सखा-सखी का अविस्मरणीय प्रेम, सबकी परिभाषा संपूर्ण रूप से एक ही शब्द में सिमटी है- कृष्ण। 

 जन्माष्टमी  ऐसे ही अनुपम, अद्भुत, अतुलनीय और अनंत पुरूष श्री कृष्ण के जन्मदिवस जन्माष्टमी पर हम उन्हीं की स्मृति को साथ बैठ दोहराते हैं I 

भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे यह द्वापर युग की बात है। उस समय धरती पर असुरों का अत्याचार इतना बढ़ गया था कि पृथ्वी माता एक गाय का रूप धरकर ब्रह्मा जी के पास अपनी व्यथा सुनाने पहुंची। ब्रह्मा जी सभी देवों और धरती माता के साथ भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। श्री विष्णु उस समय योग निद्रा में थे। देवों द्वारा स्तुति करने पर उनकी निद्रा भंग हुई और उन्होंने सबके आने का कारण पूछा। 

 मैं शीघ्र ही मथुरा में वसुदेव-देवकी के यहां जन्म लूंगा श्री विष्णु उस समय योग निद्रा में थे। देवों द्वारा स्तुति करने पर उनकी निद्रा भंग हुई और उन्होंने सबके आने का कारण पूछा। धरती माता की विपदा सुनकर श्री विष्णु ने कहा कि मैं शीघ्र ही मथुरा में वसुदेव-देवकी के यहां जन्म लूंगा, तत्पश्चात ब्रजधाम में निवास करूंगा। आप सब देव गण भी ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में शरीर धारण करें। भगवान का आदेश पाकर देवगण ब्रज में नंद-यशोदा और गोप-गोपियों के रूप में जन्म लेकर उनका कार्य सिद्ध करने को उद्यत हुए। कंस को अपनी बहन देवकी बहुत प्रिय थी द्वापर युग के अंत में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज था। उनके अत्यंत दुष्ट पुत्र कंस ने उन्हें कारावास में डालकर राज्य हथिया लिया था। कंस को अपनी बहन देवकी बहुत प्रिय थी।




 देवकी की इच्छा जान कंस ने उसका विवाह यादव वंश के वसुदेव से कर दिया। देवकी की विदाई के समय आकाशवाणी हुई कि उसका आठवां पुत्र कंस का काल बनेगा। कंस ने तुरंत ही देवकी को मार डालना चाहा, पर वसुदेव ने उससे वादा किया कि वे देवकी की आठवीं संतान कंस को सौंप देंगे। कंस इस बात पर सहमत हुआ ही था कि नारद मुनि ने आकर कहा कि आठवीं संतान की गिमती पहले गर्भ से होगी या अंतिम से? नारद जी के परामर्श पर कंस ने वसुदेव और देवकी को कारावास में डाल दिया और उनकी सात संतानों को पैदा होते ही मार डाला। तेरा काल तो गोकुल पहुंच चुका भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में देवकी के गर्भ से स्वयं भगवान कृष्ण ने जन्म लिया। जन्म लेते ही वे माता-पिता के समक्ष शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी रूप में प्रकट हुए और उनसे कहा कि अब मैं बाल रूप धारण करता हूं। तुम जल्द से मुझे ब्रजधाम पहुंचा दो और नंद के यहां उत्पन्न हुई कन्या को मेरे स्थान पर रख दो। भगवान की माया से जेल के द्वार, वसुदेव की हथकड़ी सब खुल गए और पहरेदार सो गए। 

वसुदेव बाल कृष्ण को सूप में रखकर बरसते पानी में गोकुल गांव ले चले। रास्ते में शेषनाग उनका छत्र बने और यमुना उनके पैर पखारने बढ़ चलीं। श्री कृष्ण ने अपने पैर लटका कर यमुना की इच्छा पूरी की, उनके पैर छूते ही यमुना शांत हो गईं। वसुदेव ने गोकुल पहुंचकर कृष्ण को यशोदा जी के बगल में सुला दिया और स्वयं कन्या को लेकर वापस आ गए। उनके आते ही कारावास बंद हो गया, हथकड़ी लग गई और पहरेदार जाग गए। बच्चे के रोने का स्वर सुन कंस को सूचना दी गई। 

उसने आते ही देवकी से कन्या को छीनकर पटकना चाहा, पर उसे अचंभित कर कन्या उड़ गई और बोली- अरे मूर्ख! तू मुझे क्या मारता है? तेरा काल तो गोकुल पहुंच चुका है। कंस को मारकर वसुदेव और देवकी को कारावास से छुड़ाया इसके बाद कंस ने अनेक प्रकार के असुरों और मायावी दानवों को भेजकर बालकृष्ण को मरवाने के प्रयास किए, पर सफल ना हो सका। अंत में किशोर अवस्था में श्री कृष्ण ने गोकुल का त्याग कर मथुरा गमन किया और कंस को मारकर वसुदेव और देवकी को कारावास से छुड़ाया। इस तरह धरती को असुरों के प्रकोप से मुक्ति मिली। जन्माष्टमी पूजा विधि पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात बारह बजे हुआ था। इसीलिए आज भी हमारे यहां रात 12 बजे ही श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। 


इस दिन सभी मंदिरों का श्रंृगार किया जाता है। घर-घर में झूला और झांकी सजाई जाती है। श्री कृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप का सोलह श्रंगार किया जाता है। कई स्थानो पर रात बारह बजे खीरा ककड़ी के अंदर से भगवान कृष्ण का जन्म कराया जाता है। इस दिन रात 12 बजे तक व्रत रखने की परंपरा है। रात के 12 बजते ही शंख, घंटों की आवाज से सारे मंदिरों और संपूर्ण देश में श्री कृष्ण के जन्म की सूचना से दिशाएं गूंज उठती हैं। इसके बाद भगवान कृष्ण को झूला झुलाकर आरती की जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही व्रत खोला जाता है। श्री कृष्ण द्वारा गोकुल धाम में गोपियों की मटकी से माखन लूटने की याद में लगभग संपूर्ण भारत में इस दिन मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। 




Saturday 1 September 2018

एंड्रॉयड स्मार्टफोन

नमस्कार दोस्तों।

आप का स्वागत है।




आज आपको बताएंगे कि अपने एंड्रॉयड स्मार्टफोन को सुरक्षित बनाए रखने का तरीका।

हमारे देश में काफी सारे लोगों एंड्रॉयड स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। आप जानते हैं एंड्रॉयड स्मार्टफोन के बिल्ट इन सिक्योरिटी फीचर्स :-

1. अपने एप्स को लोक करें

अब कुछ स्मार्टफोन ब्रान्ड्स यह फीचर आॅफ करने लगे हैं। आप फोन में इंस्टोल एप्स को अलग- अलग पासकोड से लॉक कर सकते हैं। इस तरह डाटा और कंटेंट को सिक्योरिटी की अतिरिक्त लेयर मिल जाती है। अगर आपके फोन में यह फीचर नहीं है तो आप थर्ड पार्टी एप्स जैसे एपलॉक या नॉर्टन एपलॉक इंस्टॉल करने यह फीचर प्राप्त कर सकते हैं।

2.मजबूत पासवर्ड लगाएं

हर फोन सिक्योरिटी के लिए पासवर्ड लॉक सेट करने की सुविधा देता है। अब ये फिंगरप्रिंट स्कैनर के साथ आने लगे हैं। पासकोड के लिए बर्थडे,कार नंबर, होम नंबर को पैटर्न या कॉम्बनेस के रुप में इस्तेमाल न करें। कई फोंन्स फेस अनलॉक भी आर्फर करते हैं, लेकिन यह फिंगरप्रिंट स्कैन की तरह सुरक्षित नहीं है। कोई भी व्यक्ति इन फोन को आपकी फोटो से अनलॉक कर सकते हैं।

3.विश्वसनीय एप्स काम में लें

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