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About Me

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Dear sir, Welcome You tube channel ( worldwide YouTube Channel) My name is Sandeep Kumar I am Graduate , Jaipur university, Rajasthan, India. I am leaving in Ahmedabad. I am Business man, my business name is GMR Enterprises. Thanks n Regards, Sandeep Kumar.

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Sunday 16 September 2018

*मूर्खों के लक्षण*

*मूर्खों के लक्षण*
🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄
👉🏾 फ्री में बैलेंस, मोबाइल, pendrive, T-shirt, झुनझुना आदि के लिए मैसेज भेजते रहते हैं, जो इन्हें कभी नहीं मिलते। 

 👉🏾ये 2-2 साल पुराने मैसेज को मार्किट में नया है कहकर फारवर्ड करते रहते हैं। 
जैसे फलां जगह बच्ची मिली है इसे घर वालों तक पहुंचाओ। इनमें तारीख़ नहीं होती। तारीख़ होती तो पोल खुल जाती। 

👉🏽ये ऐसे *एक्सीडेंट की खबरे भेजते हैं, जो 2 साल पहले हुआ था।* इनमें भी तारीख़ कभी नहीं होती। 

👉🏾व्यर्थ की साईं इमेज, फूल, पत्ती या 1121 ॐ लिखकर कसम देकर लोगों को फारवर्ड करके अपनी बला ग्रुप के मेम्बरों पर चिपकाते हैं। ( *क्या मिलता है भाई???*)

 👉🏾"पुजारी मंदिर में पूजा कर रहा था फिर एक सांप/बन्दर आया और उसने इंसान का रूप ले लिया" इसे आगे भेजो लाटरी निकल जायेगी। *(अरे मूर्ख तेरी ही नहीं निकली तो दूसरे की क्या खाक निकलेगी?)*

 👉🏽अभी अभी पैदा हुए बच्चे के गले में आलपिन फंस गई, 50 लाख लगेंगे *बच्चे के गले में आलपिन कौन डालेगा* ? *कौनसे ऑपरेशन में 50 लाख लगते हैं भाई ?*
ऊपर से बोलेंगे कि *प्रति शेयर 50 पैसा* व्हाट्सऐप की तरफ से मिलेगा।

👉🏽​​​​सबसे बड़ी *बेवकूफी* तो तब होती है जब कोई कहता है कि- "मैसेज आगे भेजो आपकी बैटरी फुल चार्ज 🔋हो जायगी"/ *घोडा दौड़ने लगेगा*, भैंस का रंग बदल जायेगा या  ताला खुल जायेगा। *(भाई physics नाम की भी कोई चीज़ होती है।)* 

👉🏾 किसी आदमी के डॉक्यूमेंट, डिग्रियाँ गिर गए हैं, ये मैसेज उस तक पहुचाने में मदद करें. *(अरे मंदबुद्धि डॉक्यूमेंट में उसका नंबर और पता नहीं है क्या???)*

यदि इनमें से कोई भी लक्षण आप में हैं, तो आप भी Whatsapp पर अपनी अल्प बुद्धि का परिचय दे रहे हैं। 

निवेदन है आप ऐसे संदेश भेजकर अपना और दूसरों का समय बरबाद न करें।

*अनावश्यक पोस्ट डालकर मोबाइल को कूड़ाघर नहीं बनायें। कोई भी msg पोस्ट करने से पहले सोच लें कि आप क्या पोस्ट कर रहे हैं। थोड़ा अपना दिमाग लगाएँ।*  
   💥💥💥💥💥💥💥💥💥                 

*अब आपसे निवेदन है कि इस msg को रोजाना 2बार 10 ग्रुप में भेजो आपको फालतू के msg आना बंद हो जायेंगे। और ऐसे पागलो से पीछा छूट जायेगा*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

स्यमंतक मणि की कथा

*🌹स्यमंतक मणि की कथा  (  गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करने वाली कथा )*

🌹श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध के अध्याय 56 और 57 में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं,'' परीक्षित ! सत्राजित ने श्री कृष्ण पर मणि चोरी का झूठा कलंक लगाया था और फिर अपने उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमंतक मणि सहित अपनी कन्या सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण को सौंप दी। ''

🌹राजा परीक्षित ने पूछा," भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्री कृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या श्री कृष्ण को क्यों सौंप दी ? ''

🌹श्री शुकदेव जी कहते हैं," परीक्षित ! सत्राजित भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। सूर्यदेव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसके बहुत बड़े मित्र बन गये। सूर्य भगवान ने ही प्रसन्न होकर बड़े प्रेम से उसे स्यमंतक मणि दी थी। सत्राजित उस दिव्य मणि को गले में धारण करके ऐसा चमकने लगा, मानों स्वयं सूर्यदेव ही हों । 

🌹जब सत्राजित द्वारका आया, तो अत्यंत तेजस्विता के कारण लोग उसे पहचान न सके । दूर से ही उसे देखकर लोगों की आँखें उसके तेज से चौंधिया गईं। लोगों ने समझा कि कदाचित स्वयं भगवान सूर्य ही आ रहें हैं।

🌹उन लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के पास आकर उन्हें इस बात की सूचना दी । भगवान उस समय चौसर खेल रहे थे। लोगों ने कहा," हे शंख-चक्र-गदाधारी, नारायण! कमलनयन दामोदर ! यदुवंशशिरोमणि गोविन्द ! देखिये, अपनी चमकीली किरणों से लोगों के नेत्रों को चौंधियाते हुए भगवान सूर्य आपके दर्शन करने आ रहे हैं। प्रभो ! सभी श्रेष्ठ देवता त्रिलोकी में आपकी प्राप्ति का मार्ग ढूंढते रहते हैं। आज आपको यदुवंश में छिपा जानकर सूर्य भगवान आपके दर्शन करने आ रहे हैं। "

🌹श्री शुकदेव जी कहते हैं," अंजान लोगों की यह बात सुनकर कमलनयन भगवान श्री कृष्ण हंसने लगे । उन्होंने कहा," यह तो सत्राजित है, जो मणि के प्रभाव से इतना चमक रहा है। " 
इसके बाद सत्राजित अपने समृद्ध घर चला आया। घर पर उसके शुभ आगमन के उपलक्ष्य में मंगल-उत्सव मनाया जा रहा था। उसने ब्राह्मणों द्वारा स्यमंतक मणि को एक देवमंदिर में स्थापित करवा दिया। वह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना दिया करती थी और जहां वह मणि पूजित होकर रहती थी, वहाँ महामारी, ग्रह -पीड़ा, सर्पभय, मानसिक एवं शारीरिक व्यथा तथा मायावियों का उपद्रव आदि कोई भी अशुभ नहीं होता था।
एक बार भगवान श्री कृष्ण ने प्रसंगवश कहा," सत्राजित ! तुम अपनी मणि राजा उग्रसेन को दे दो । पर वह इतना अर्थ-लोलुप था कि भगवान की आज्ञा का उल्लंघन होगा, इसका कुछ भी विचार न करते हुए भगवान श्री कृष्ण की बात को अस्वीकार कर दिया।

🌹श्री शुकदेव जी कहते हैं," एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन ने उस परम प्रकाशमय मणि को अपने गले में धारण कर लिया और वह घोड़े पर सवार होकर शिकार खेलने वन में चला गया। वहाँ एक सिंह ने घोड़े सहित प्रसेन को मार डाला और उस दिव्य मणि को छीन लिया। वह सिंह अभी पर्वत की गुफा में प्रवेश कर ही रहा था कि मणि के लिए ॠक्षराज जाम्बवान् ने उस सिंह को मार डाला और उन्होंने वह मणि अपनी गुफा में ले जाकर बच्चों को खेलने के लिए दे दी।

🌹अपने भाई प्रसेन के न लौटने पर उसके भाई सत्राजित को बड़ा दुःख हुआ। वह कहने लगा," बहुत संभव है कि श्री कृष्ण ने ही मेरे भाई को मार डाला हो, क्योंकि वह मणि गले में डाल कर वन गया था। "

🌹सत्राजित की बात सुनकर लोग आपस में काना-फूंसी करने लगे। जब भगवान श्री कृष्ण ने यह सुना कि इस कलंक का टीका मेरे सिर लगाया जा रहा है, तब वह नगर के कुछ सभ्य पुरषों को साथ लेकर प्रसेन को ढूंढने वन में गये।

🌹वहाँ खोजते-खोजते लोगों ने देखा कि घोर जंगल में सिंह ने प्रसेन और उसके घोड़े को मार डाला है। जब वे लोग सिंह के पैरों के निशान देखते हुए आगे बढ़े, तब उन लोगों ने यह भी देखा कि पर्वत पर रीछ ने सिंह को भी मार डाला है।

🌹भगवान श्री कृष्ण ने सब लोगों को गुफा के बाहर ही बैठा दिया और अकेले ही घोर अन्धकार से भरी हुई ॠक्षराज की उस भयंकर गुफा में प्रवेश किया। भगवान ने वहाँ जाकर देखा कि श्रेष्ठ मणि को बच्चों का खिलौना बना दिया गया है। वे उस मणि को हर लेने की इच्छा से बच्चों के पास जा खड़े हुए। उस गुफा में एक अपरिचित मनुष्य को देखकर बच्चों की दायीं भयभीत की भाँति चिल्ला उठी। उसकी चिल्लाहट को सुनकर परम बली ॠक्षराज जाम्बवान क्रोधित होकर वहाँ दौड़ आये।

🌹श्री शुकदेव जी कहते हैं," उस समय जाम्बवान कुपित हो रहे थे और उन्हें भगवान की महिमा एवं प्रभाव का पता नहीं चला। उन्होंने भगवान को एक साधारण मनुष्य समझ लिया और अपने स्वामी भगवान श्री कृष्ण से युद्ध करने लगे। मणि के विजयाभिलाषी भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवान आपस में घमासान युद्ध करने लगे। पहले तो उन्होंने अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार किया और फिर शिलाओं का उपयोग किया। तत्पश्चात वें दोनों वृक्ष उखाड़ कर एक-दूसरे पर फेंकने लगे । अन्त में इनमें बाहुयुद्ध होने लगा। वज्र प्रहार के समान कठोर घूँसों की चोट से जाम्बवान के शरीर की एक गाँठ टूट गई। उनका उत्साह जाता रहा। तब उन्होंने अत्यंत विस्मित-चकित होकर भगवान श्री कृष्ण से कहा," हे प्रभु ! मैं जान गया, आप ही समस्त प्राणियों के रक्षक, प्राण-पुरष भगवान हैं, आप ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा आदि को भी बनाने वाले हैं और आप अवश्य ही मेरे वही भगवान हैं, जिन्होंने अपने दिव्य बाणों से राक्षसों के सिर काट-काट कर पृथ्वी पर गिरा दिए। "

🌹जब जाम्बवान ने भगवान को पहचान लिया, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम कल्याणकारी करकमल को जाम्बवान के शरीर पर फेर दिया और फिर कृपा से भरकर अत्यंत प्रेम से अपने भक्त जाम्बवान से कहने लगे कि हम इस मणि के लिए तुम्हारी गुफा में आये हैं और इस मणि के द्वारा मैं अपने ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाना चाहता हूँ। भगवान के ऐसा कहने पर जाम्बवान जी ने बड़े आनंद के साथ उनकी पूजा करने के लिए अपनी कन्या कुमारी जाम्बवती जी को मणि के साथ भगवान के श्री चरणों में समर्पित कर दिया।

🌹भगवान श्री कृष्ण जिन लोगों को गुफा के बाहर छोड़ गये थे, उन्होंने बारह दिन तक उनकी प्रतीक्षा की, पर जब उन्होंने देखा कि अब तक भगवान गुफा से नहीं निकलें, तो वह सब अत्यंत दुखी हो द्वारका वापिस लौट आए। वहाँ जब माता देवकी, रूक्मणि, वसुदेव जी सहित अन्य संबंधियों और कुटुम्बियों को पता चला, तो उन्हें बहुत शोक हुआ। सभी द्वारकावासी सत्राजित को भला-बुरा कहने लगे और भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति के लिए महामाया की शरण गए।

🌹महामाया उनकी उपासना से प्रसन्न होकर प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी समय उनके बीच में मणि सहित अपनी नववधू जाम्बवती को लेकर प्रकट हो गये।

🌹तदनंतर भगवान ने सत्राजित को राजसभा में महाराज उग्रसेन के पास बुलवाया और जिस प्रकार मणि प्राप्त हुई, वह सब कथा सुनाकर उन्होंने वह मणि सत्राजित को सौंप दी। अपने अपराध पर सत्राजित को। बड़ा पश्चाताप हो रहा था, किसी प्रकार वह अपने घर पहुँचा। अब वह यही सोचता रहता कि मैं अपने अपराध का मार्जन कैसे करूँ  ? मैं ऐसा कौन सा कार्य करूँ कि लोग मुझे कोसे नहीं।

🌹उसने विचार किया कि अब मैं अपनी रमणियों में रत्न के समान पुत्री सत्यभामा और स्यमंतक मणि दोनों को ही श्री कृष्ण को दे दूँ, तो मेरे अपराध का अन्त हो सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं है।

🌹सत्यभामा शील स्वभाव, सुन्दरता, उदारता आदि गुणों से संपन्न थी। सत्राजित ने अपनी कन्या और स्यमंतक मणि दोनों को ले जाकर भगवान श्री कृष्ण को अर्पित कर दिया।
🌹भगवान ने विधिपूर्वक उनका पाणिग्रहण किया और सत्राजित से कहा कि हम स्यमंतक मणि नहीं लेंगे। आप सूर्य भगवान के परम भक्त हैं, इसलिए वह आप ही के पास रहे । हम तो केवल उसके फल अर्थात् उससे निकले सोने के अधिकारी हैं, वही आप हमें दे दिया करें।

🌹कुछ ही समय बाद अक्रूर के कहने पर ऋतु वर्मा ने सत्राजित को मारकर मणि छीन ली। श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ उनसे युद्ध करने पहुंचे। युद्ध में जीत हासिल होने वाली थी कि ऋतु वर्मा ने मणि अक्रूर को दे दी और भाग निकला। श्रीकृष्ण ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन मणि हासिल नहीं कर सके। जब बलराम ने उनसे मणि के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मणि उनके पास नहीं। ऐसे में बलराम खिन्न होकर द्वारिका जाने की बजाय इंद्रप्रस्थ लौट गए। 
उधर द्वारिका में फिर चर्चा फैल गई कि श्रीकृष्ण ने मणि के मोह में भाई का भी तिरस्कार कर दिया। मणि के चलते झूठे लांछनों से दुखी होकर श्रीकृष्ण सोचने लगे कि ऐसा क्यों हो रहा है। 

🌹तब नारद जी आए और उन्होंने कहा कि हे श्री कृष्ण ! आपने भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन किये थे और इसी कारण आपको मिथ्या कलंक झेलना पड़ रहा हैं।
श्रीकृष्ण चंद्रमा के दर्शन कि बात विस्तार पूछने पर नारदजी ने श्रीकृष्ण को कलंक वाली यह कथा बताई थी-

🌹एक बार भगवान श्रीगणेश ब्रह्मलोक से होते हुए लौट रहे थे कि चंद्रमा को गणेशजी का स्थूल शरीर और गजमुख देखकर हंसी आ गई। गणेश जी को अपना यह अपमान सहन नहीं हुआ और उन्होंने चंद्रमा को शाप देते हुए कहा, "पापी तूने मेरा मजाक उड़ाया हैं। आज मैं तुझे शाप देता हूं कि जो भी तेरा मुख देखेगा, वह कलंकित हो जायेगा। "

🌹गणेशजी का शाप सुनकर चंद्रमा बहुत दुखी हुए क्योंकि इस प्रकार तो उन्हें सृष्टि में सर्वदा अशुभ होने की मान्यता प्राप्त हो जाएगी। गणेशजी के शाप वाली बात चंद्रमा ने समस्त देवताओं को बतायी तो सभी देवताओं को चिंता हुई और विचार विमर्श करने लगे कि चंद्रमा ही रात्रिकाल में पृथ्वी का आभूषण हैं तथा इसे देखे बिना पृथ्वी पर रात्रि का कोई काम पूरा नहीं हो सकता। 

🌹अत: चंद्रमा को साथ लेकर सभी देवता ब्रह्माजी के पास पहुचें। देवताओं ने ब्रह्माजी को सारी घटना विस्तार से सुनाई। उनकी बातें सुनकर ब्रह्माजी बोले, " चंद्रमा तुमने सभी गणों के अराध्य देव शिव-पार्वती के पुत्र गणेश का अपमान किया हैं। यदि तुम गणेश के शाप से मुक्त होना चाहते हो तो श्रीगणेशजी का व्रत रखो। वे दयालु हैं, तुम्हें माफ कर देंगे। "

🌹चंद्रमा गणेशजी को प्रशन्न करने के लिये कठोर व्रत-तपस्या करने लगे। भगवान गणेश चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और कहा वर्षभर में केवल एक दिन भाद्रपद में शुक्ल चतुर्थी की रात्रि को जो तुम्हें देखेगा, उसे ही कोई मिथ्या कलंक लगेगा। बाकी दिन कुछ नहीं होगा। केवल एक ही दिन कलंक लगने की बात सुनकर चंद्रमा समेत सभी देवताओं ने राहत की सांस ली। 

🌹उसी दिन से गणेश चतुर्थी यानि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध माना गया है।
स्वयं श्रीकृष्ण जी ने भागवत ( स्कंध -10 के अध्याय 56 ) में इसे मिथ्याभिशाप कहकर मिथ्या कलंक का ही संकेत दिया है। स्कंद पुराण में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्ल पक्ष के चन्द्र दर्शन मैंने गोखुर के जल में किए, जिसके फलस्वरूप मुझ पर मणि की चोरी का झूठा कलंक लगा-

*" मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चंद्रदर्शनं गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता " *

🌹देवर्षि नारदजी ने भी श्री कृष्ण को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्र दर्शन करने के फलस्वरूप व्यर्थ कलंक लगने की बात कही है-

*" त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम् । कृतं येनेह भगवन् वृथाशापमवाप्तवानम् ।। "*

🌹इसके अतिरिक्त श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इस तिथि को चन्द्रमा के दर्शन ना किए जाने के संकेत दिए हैं-

*" सो परनारि लिलार गोसाईं । तजउ चौथि कै चंद की नाईं ।। "*

🌹यदि भूलवश इस तिथि को चन्द्र  दर्शन हो ही जायें
*विष्णु पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन से कलंक लगने के शमन हेतु विष्णु पुराण में वर्णित स्यमंतक मणि का उल्लेख पढ़ने या सुनने से यह दोष समाप्त होता है।*

🌹अत: स्यमंतक मणि की ( ऊपर लिखी ) यह कथा गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करती है।




अक्षरों का कमाल

🇦 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  कंजुस 😥
'🇧 '  अक्षर  वाले  होते  है   स्वीट😊
'🇨 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  हर  दिल  अजीज😍
'🇩 '  अक्षर  वाले  कभी  समझौता  नहीं  करते😏
'🇪 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  दिल➖फेंक  😍
'🇫 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  बेहद  चार्मिंग😄
'🇬 '  अक्षर  वालों  के  दिल  में  मैल  नहीं  |😊
'🇭 '  अक्षर  वाले  होतें  हैं  संकोची😠
'🇮 '  अक्षर  वाले  दिल  से  सोचते  हैं  💓|
'🇯 '  अक्षर  वाले  होते  है  बेहद  नखरीले😒
'🇰 '  अक्षर  वाले  होते  है    दिलवाले  |😃
'🇱 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  प्यारे➖प्यारे😌
'🇲 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  मनमौजी  😜😝😝
'🇳 '  अक्षर  वाले  होते  हैअपना  बनाने  वाले  😊
'🇴 '  अक्षर  वाले  होते  है  छुपे  रूस्तम  😜|
'🇵 '  अक्षर  वाले  होते  है  पैसै  वाले💰
'🇶 '  अक्षर  वाले  होते  है  क्रियेटिव  |😇
'🇷 '  अक्षर  वाले  होते  है  प्यार  देने  वाले💞आखिर  तक  सात  देनेवाले  👫
'🇸 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  बेहद  रोमाटिंक  |😍
'🇹 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  मेहनती😧
'🇺 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  मस्तमौला  😛
'🇻 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  आजाद  ख्याल  के😆
'🇼 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  अड़ियल😠  |
'🇽 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  जल्दबाज😤
'🇾 '  अक्षर  वाले  बोलते  हैं  कड़वा  |😡
'🇿 '  अक्षर  वाले  होते  हैं  सादगी  पसंद▪😊☺😌

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लोग बदलते जा रहे है


 

आम आदमी हुआ है बूढ़ा, नेता हुए जवान
जनता को ये बेच रहें हैं, जैसे हो बाज़ार 
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.....

लोग बदलते जा रहे है
खंडित खंडित देश हो रहा, खंडित सी पहचान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!
सच कहने वाले के तन पे, लाठी की बौछारें,
और खुद को बतलाते हैं वो, सच्चा, नेक, ईमान!

मजदूरों को मेहनत की भी, मजदूरी ना मिलती!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

आम आदमी हुआ है बूढ़ा, नेता हुए जवान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

शीतलहर में रहने वाले, गर्मी क्या जानेंगे!
कितनी भी तुम करो मन्ववत, वो कैसे मानेंगे!
उनके खून की एक बूंद से, अखबारें छप जातीं,
बाल बराबर करेंगे लेकिन, सौ गज की तानेंगे!

आम आदमी की झुग्गी पे, तिरपालें ना मिलतीं!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

उनकी पशु प्रवत्ति से तो, थर्राता इन्सान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

सत्ता उनकी बनी बपौती, ऐसा है व्यवहार!
जनता को ये बेच रहें हैं, जैसे हो बाज़ार!
मिन्नत कर लो लेकिन उनसे, "देव" नहीं मिलते हैं,
उनके घर के चहुऔर है, पर्वत सी दीवार!

आम आदमी सिसक रहा है, दवा तलक ना मिलती!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

देश की कोई फ़िक्र नहीं है, खुद को कहें महान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!"
 
ज़िंदगी के वो खूबसूरत लम्हे कहीं खोते जा रहे है 
जो कल अपने थे वो आज पराए होते जा रहे है 
कभी माँ के हाथ की रोटी सबसे स्वादिष्ट लगती थी 
आज तो बस Mcdonald's को ही चुनते जा रहे है 
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब बेटा बाप की गोद में सोया करता था 
बाप की डांट सुनकर रूठ जाया करता था 
फिर बाप भी उसे बड़े प्यार से मनाया करता था 
आज तो हम माँ बाप को हड़काते(तंगकरना) जा रहे है
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब हम भगवान को याद करते थे 
सुबह शाम मंदिर जाया करते थे 
खुद के लिए नहीं बल्कि सबके लिए दुआ करते थे 
आज तो बस पैसो की अहमियत देकर हम उस परवादिगर (पालन करने वाला )को भूलते जा रहे है,

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
एक वक़्त था जब सब दोस्त यार शाम की चाय साथ पिया करते थे ।
चाय के साथ दिलचस्प बातें किया करते थे। 
हम सब राइस होने की तम्मनाएं किया करते थे 
आलम अब यह रहा कि सब यहा एक दूसरे को  छोड़ आगे बढ़ते जा रहे है ।

शायद सब लोग बदलते जा रहे है ।
अपनी तनहाई को देख आज कुछ शब्द लिखते जा रहे है ।
जो छोड़ गए हमें उनपर इल्ज़ाम लगते जा रहे है ।
दुनियाँ से मिले गमों से जाने अनजाने टूटते जा रहे है ।
वक़्त के इस तेज़ रफ्तार से हम अपनों से पिछड़ते जा रहे है ।

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
दुनिया में घुल कर अखरत को भूलते जा रहे है 
हम ही अपने आप को बदलते जा रहे है 
प्रभु के इस जगत से खिलवाड़ करते जा रहे है 
अपनी सफ़ेद रूह पर कालिख पोतते जा रहे है ।

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
कोई हमें छोड़े तो गवारा नहीं ,तो फिर भगवान को क्यूँ छोडते जा रहे है।
यह सब देख कर एक रूठी हुई कलम से लिखता हूँ मैं ,

शायद लोग बदलते जा रहे है।





 





 लोग बदलते जा रहे है
 राजा और रंक
 मौत से ठन गई!
 अपने-पराए
 कदम मिलाकर चलना होगा
 कोई क्या कहेगा ?
 गर्दिशों का दौर
 अश्कों का सहारा
 पर्यावरण जागरूकता
 क्या हैवान बनेगा

 


Saturday 15 September 2018

A Moral Story : Two Silly Goats

Moral Story :- Two Silly Goats

Let us enjoy reading this story of Two Silly Goats

There lived two silly goats in a village. 

There was a narrow bridge over a river in the village. 

One day, the goats wanted to cross the bridge. 

One silly goat was on one side. 

The other one was on the other side. 

One of them said, “I shall go first. Allow me to pass." 

The other goat said, “No. I must cross first. You move aside." 

Neither of them yielded. 

At last, they came to the middle of the bridge. 

They began to fight terribly. 

As they were fighting, both of them fell into the river and were drowned. 

Wednesday 12 September 2018

Happy Hindi Diwas 2018: मनाइए हिंदी दिवस

हिन्दी के ऐतिहासिक अवसर को याद करने के लिये हर साल 14 सितंबर को पूरे देश में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इसको हिन्दी दिवस के रुप में मनाना शुरु हुआ था क्योंकि वर्ष 1949 में 14 सितंबर को संवैधानिक सभा के द्वारा आधिकारिक भाषा के रुप में देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को स्वीकृत किया गया था।

हिन्दी दिवस 2018, 14 सितंबर शुक्रवार को मनाया जाएगा।
हमारी एकता और अखंडता ही हमारे देश की पहचान है हिंदुस्तान हैं हम और हिंदी हमारी जुबान है
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हिंदी आर्शीवाद सी है अंग्रेजी एक आफत है हिंदी मात्र भाषा नहीं हिंदी हमारी विरासत है
विविधताओं से भरे इस देश में लगी भाषाओं की फुलवारी है इनमें हमकों सबसे प्यारी हिंदी मातृभाषा हमारी है
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जब भी होता ये दिल भावुक और ये जुबान लड़खड़ती है ऐसे समय में बस अपनी मातृ भाषा ही काम आती है भारत के हर घर को आपस में जो साथ मिलाए संपर्क सूत्र का काम करे जो वो भाषा हिंदी कहलाए
हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है ?
देश में हिन्दी भाषा की महत्ता को प्रदर्शित करने के लिये पूरे भारत में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। भारत में हिन्दी भाषा का बड़ा इतिहास है जो इंडों-यूरोपियन भाषा परिवार के इंडों-आर्यन शाखा से संबद्ध रखता है। भारत की सरकार ने देश की आजादी के बाद मातृभाषा को आर्दश के अनुरुप बनाने के लिये एक लक्ष्य बनाया अर्थात हिन्दी भाषा को व्याकरण और वर्तनीयुक्त करने का लक्ष्य। इसे भारत के अलावा मॉरीशस, पाकिस्तान, सुरीनाम, त्रिनिदाद और कुछ दूसरे देशों में भी बोली जाता है। इसे 258 मिलीयन लोगों द्वारा मातृभाषा के रुप में बोली जाती है और ये दुनिया की 5वीं लंबी भाषा है।
हिन्दी दिवस
14 सितंबर प्रत्येक वर्ष एक कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है,क्योंकि भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि में लिखित) भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाई गई थी। हिंदी भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने का निर्णय भारत के संविधान द्वारा (जो 1950 में 26 जनवरी को प्रभाव में आया है) वैध किया गया था। भारतीय संविधान के अनुसार, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी भाषा को पहले भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अनुच्छेद 343 के तहत अपनाया गया था।

हिन्दी दिवस पर क्रियाएँ

हिन्दी कविता, कहानी व्याख्यान, शब्दकोष प्रतियोगिता आदि से संबंदधित अलग कार्यक्रम और प्रतियोगिता आयोजन के साथ हिन्दी दिवस के रुप में स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, संस्थान और दूसरे उद्यमों में हिन्दी दिवस को मनाया जाता है। भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है इसलिये इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिये। हिन्दी विश्व में सामान्यत: दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हिन्दी से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लिये लोगों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन पर पुरस्कृत किया जाता है।
राजभाषा पुरस्कार विभागों, मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए दिया जाता है। हिंदी दिवस पर प्रतिवर्ष वितरित किये जाने वाले पुरस्कारों में सें दो के नाम गृह मंत्रालय द्वारा 25 मार्च 2015 को बदल दिये गये। इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार (1986 में स्थापित किया गया था) को राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजीव गांधी राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार को राजभाषा गौरव पुरस्कार में बदल दिया गया है।

हिंदी दिवस का जश्न

हिंदी दिवस भारत की मातृ भाषा को सम्मान देने के लिये प्रति वर्ष मनाया जाता है। यह लोगों द्वारा सरकारी कार्यालयों, निजी कार्यालयों, और शैक्षिक संस्थानों में मनाया जाता है। यह शिक्षकों के उचित मार्गदर्शन में विविध गतिविधियों के साथ स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा मनाया जाता है। हिंदी दिवस पूरे देश भर में मनाया जाता है, जो भारत में सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है। यह बहुत सी मनोरंजक गतिविधियों की एक विशेष सभा का आयोजन करके लगभग सभी स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों द्वारा मनाया जाता है। विभिन्न कक्षाओं के छात्रों द्वारा, भाषण का सस्वर पाठ, निबंध लेखन, हिंदी कविता पाठ, कबीर दास के दोहे, रहीम के दोहे, तुलसी दास के दोहों का सस्वर पाठ गायन, गीत, नृत्य, हिन्दी में सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, नाटक, नारा लेखन आदि इस दिन की मुख्य गतिविधियों में शामिल है। इस दिन, छात्रों को विशेष रुप में हिन्दी भाषा में भाषण देने, निबन्ध लिखने और अन्य गतिविधियॉ करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। स्कूलों में छोटे बच्चों को भी हिंदी में कुछ लिखने के लिए कार्य या कुछ लाइनों का भाषण दिया जाता है। एक बहुत पुराना और प्रसिद्ध हिन्दी भजन ("ऐ मलिक तेरे बंदे हम ') छात्रों द्वारा समूह में गाया जाता है।
राष्ट्रीय भाषा दिवस - हिंदी दिवस को मनाने के लिये विभिन्न स्कूलों द्वारा आंतरिक स्कूल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। विभिन्न स्कूलों के छात्रों को विविध प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए जैसे हिन्दी कविता का पाठ("हिंदी मेरी पहचान" के विषय पर आधारित) और (एकता का सूत्र हिंदी 'विषय पर आधारित) प्रतियोगिता के लिये आमंत्रित करते हैं। स्कूलों द्वारा इस प्रकार की प्रतियोगिताओं के आयोजन छात्रों को अपने अन्दर छुपे अलग रुचिपूर्ण तरीकें के साथ हिन्दी भाषा के ज्ञान की खोज के लिये किया जाता है।

हिन्दी दिवस का महत्व और एक कार्यक्रम के रुप में मनाने की आवश्यकता

हिन्दी हमारी मातृ भाषा है और हमें इसका आदर और सम्मान करना चाहिये। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के एक साथ विकास के कारण, हिन्दी ने कहीं ना कहीं अपना महत्ता खो दी है। प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने के लिये हर कोई अंग्रेजी को बोलना और सीखना चाहता है और इसी प्रकार की माँग भी है। हालाकिं, हमें अपनी मातृ भाषा को नहीं छोडना चाहिये और इसमें भी रुचि लेनी चाहिये और सफल होने के साथ अन्य आवश्यकताओं का पूर्ति के लिये दोनों का ज्ञान एक साथ होना चाहियें। किसी भी देश की भाषा और संस्कृति किसी भी देश में लोगों को लोगों से जोङे रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
किसी भी आर्थिक रूप से संपन्न देश की मातृभाषा के पंख तेजी से बढ़ने लगते है क्योंकि अन्य देशों के लोग भी उस भाषा को सीखना चाहते हैं, हालाकिं वे ये नही सोचते कि उनकी अपनी पहचान अपना मातृभाषा और संस्कृति पर निर्भर करती है। हर भारतीय को हिंदी भाषा को मूल्य देना चाहिए और देश में आर्थिक उन्नति का लाभ लेना चाहिये। यह प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास को उजागर करती है और भविष्य में हमारी पहचान की कुँजी है। यह एक बहुत ही विशाल भाषा है, जो अन्य देशों(नेपाल, त्रिनिदाद, मारीशस, आदि) के लोगों द्वारा भी बोली और अच्छी तरह से समझी जाती है। यह एक दूसरे के साथ बातचीत करने के लिए बहुत आसान और सरल साधन प्रदान करती है। यह विविध भारत को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिये संपर्क भाषा के रूप में कही जाती है। हर साल हिंदी को सम्मान देने और इसके महत्व को अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करने के लिये हिंदी दिवस बहुत बङे कार्यक्रम के रूप में मनाने की एक जरूरत है। हिन्दी दिवस का जश्न मनाना चाहिये इस लिये नहीं कि यह हमारी राजभाषा है बल्कि इसलिये भी कि यह हमारी मातृ भाषा है जिसका हमें सम्मान करना चाहिये और समय समय पर स्मरणोत्सव भी मनाना चाहिये। हमें हमारी राजभाषा पर गर्व करना चाहिये और अन्य देशों में हिन्दी बोलते समय कभी भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करना चाहिये। आजकल सभी कार्य क्षेत्रों में अंग्रेजी की बढती लोकप्रियता के कारण लोग अंग्रेजी को हिन्दी से अधिक पसन्द करते है। इस अवस्था में, हिन्दी दिवस का वार्षिकोत्सव भारतियों को गौरवाविंत महसूस कराता है कि एक दिन अपनी राजभाषा के लिये भी समर्पित है।
यह कार्यक्रम भारतियों को तहे दिल से हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार का अवसर प्रदान करता है। यह उत्सव देश के युवाओं के बीच हिन्दी भाषा के बारे में उत्साह का सूत्रपात करेगा। यह युवाओं को प्रेरित करता है, और उनके बीच में हिंदी के लिये सकारात्मक धारणा लाता है। तो, हमें हर साल बड़े उत्साह के साथ हिंदी दिवस मनाना चाहिए, दिल से हिंदी भाषा के महत्व को महसूस करने के लिये स्कूल, कॉलेज, समुदाय या समाज में आयोजित विविध कार्यक्रमों की में भाग लेना चाहिये।

Tuesday 11 September 2018

श्री हनुमान चालीसा





श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।


जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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