Account ID: pub-2276572159567559 Client ID: ca-pub-2276572159567559 Worldwide: लोग बदलते जा रहे है Account ID: pub-2276572159567if559 Client ID: ca-pub-2276572159567559

About Me

My photo
Dear sir, Welcome You tube channel ( worldwide YouTube Channel) My name is Sandeep Kumar I am Graduate , Jaipur university, Rajasthan, India. I am leaving in Ahmedabad. I am Business man, my business name is GMR Enterprises. Thanks n Regards, Sandeep Kumar.

Worldwide

Account ID: pub-2276572159567559
Client ID: ca-pub-2276572159567559

Worldwide

Account ID: pub-2276572159567559
Client ID: ca-pub-2276572159567559

Sunday, 16 September 2018

लोग बदलते जा रहे है


 

आम आदमी हुआ है बूढ़ा, नेता हुए जवान
जनता को ये बेच रहें हैं, जैसे हो बाज़ार 
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.....

लोग बदलते जा रहे है
खंडित खंडित देश हो रहा, खंडित सी पहचान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!
सच कहने वाले के तन पे, लाठी की बौछारें,
और खुद को बतलाते हैं वो, सच्चा, नेक, ईमान!

मजदूरों को मेहनत की भी, मजदूरी ना मिलती!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

आम आदमी हुआ है बूढ़ा, नेता हुए जवान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

शीतलहर में रहने वाले, गर्मी क्या जानेंगे!
कितनी भी तुम करो मन्ववत, वो कैसे मानेंगे!
उनके खून की एक बूंद से, अखबारें छप जातीं,
बाल बराबर करेंगे लेकिन, सौ गज की तानेंगे!

आम आदमी की झुग्गी पे, तिरपालें ना मिलतीं!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

उनकी पशु प्रवत्ति से तो, थर्राता इन्सान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान.............

सत्ता उनकी बनी बपौती, ऐसा है व्यवहार!
जनता को ये बेच रहें हैं, जैसे हो बाज़ार!
मिन्नत कर लो लेकिन उनसे, "देव" नहीं मिलते हैं,
उनके घर के चहुऔर है, पर्वत सी दीवार!

आम आदमी सिसक रहा है, दवा तलक ना मिलती!
उनके घर के चूल्हों में तो, चिंगारी ना जलती!

देश की कोई फ़िक्र नहीं है, खुद को कहें महान!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से हिंदुस्तान!"
 
ज़िंदगी के वो खूबसूरत लम्हे कहीं खोते जा रहे है 
जो कल अपने थे वो आज पराए होते जा रहे है 
कभी माँ के हाथ की रोटी सबसे स्वादिष्ट लगती थी 
आज तो बस Mcdonald's को ही चुनते जा रहे है 
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब बेटा बाप की गोद में सोया करता था 
बाप की डांट सुनकर रूठ जाया करता था 
फिर बाप भी उसे बड़े प्यार से मनाया करता था 
आज तो हम माँ बाप को हड़काते(तंगकरना) जा रहे है
शायद लोग बदलते जा रहे है 
 
एक वक़्त था जब हम भगवान को याद करते थे 
सुबह शाम मंदिर जाया करते थे 
खुद के लिए नहीं बल्कि सबके लिए दुआ करते थे 
आज तो बस पैसो की अहमियत देकर हम उस परवादिगर (पालन करने वाला )को भूलते जा रहे है,

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
एक वक़्त था जब सब दोस्त यार शाम की चाय साथ पिया करते थे ।
चाय के साथ दिलचस्प बातें किया करते थे। 
हम सब राइस होने की तम्मनाएं किया करते थे 
आलम अब यह रहा कि सब यहा एक दूसरे को  छोड़ आगे बढ़ते जा रहे है ।

शायद सब लोग बदलते जा रहे है ।
अपनी तनहाई को देख आज कुछ शब्द लिखते जा रहे है ।
जो छोड़ गए हमें उनपर इल्ज़ाम लगते जा रहे है ।
दुनियाँ से मिले गमों से जाने अनजाने टूटते जा रहे है ।
वक़्त के इस तेज़ रफ्तार से हम अपनों से पिछड़ते जा रहे है ।

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
दुनिया में घुल कर अखरत को भूलते जा रहे है 
हम ही अपने आप को बदलते जा रहे है 
प्रभु के इस जगत से खिलवाड़ करते जा रहे है 
अपनी सफ़ेद रूह पर कालिख पोतते जा रहे है ।

शायद लोग बदलते जा रहे है ।
कोई हमें छोड़े तो गवारा नहीं ,तो फिर भगवान को क्यूँ छोडते जा रहे है।
यह सब देख कर एक रूठी हुई कलम से लिखता हूँ मैं ,

शायद लोग बदलते जा रहे है।





 





 लोग बदलते जा रहे है
 राजा और रंक
 मौत से ठन गई!
 अपने-पराए
 कदम मिलाकर चलना होगा
 कोई क्या कहेगा ?
 गर्दिशों का दौर
 अश्कों का सहारा
 पर्यावरण जागरूकता
 क्या हैवान बनेगा

 


No comments:

Featured post

Safe- Saty Home -

Worldwide