मनुष्य का संघर्ष किस से है ? अपने “मैं ” से | जो क्रांति करनी है वो खुद के अहंकार से करनी है | अहंकार से घिरा होना ही संसार में होना है और जो अहंकार के बाहर है वही परमात्मा में है |
ओशो भारत के सबसे अधिक रहस्यमयी अध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक रहे है बहुत से लोग है जो उनसे सहमत नहीं है लेकिन उनसे अधिक तादात में वो है जो इनसे सहमत है क्योंकि जाहिर सी बात है किसी भी इन्सान को पढ़े बिना या सुनी सुनाई बातों को आधार मानकर उसके विचारो से सहमत या असहमत होना पूर्ण रूप से मूर्खता है और जो लोग ओशो से सहमत नहीं है वो ये तर्क देते है कि ओशो ने sex पर अपने खुले विचार रखकर जो सोच लोगो में कायम करने की कोशिश की वो संस्कृति विनाशक है जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि मेरे ख्याल से जब एक व्यस्क इन्सान sex के बारे में दिनभर सोच सकता है तो उस पर बात करने में क्या हर्ज़ है और न ही कोई बुराई है |
ओशो की बहुत सी अन्य पुस्तके है जो sex विषय से हटकर है और आप उनके पढ़कर जिन्दगी के बारे में कंही बेहतर नजरिया हासिल कर सकते है | वैसे आपको बता दू ओशो की सबसे विवादित पुस्तक जो है वो है “सम्भोग से समाधी की ओर” और जो इन्सान ओशो के बारे में पूर्वाग्रह लिए है उसे कम से कम एक बार इस पुस्तक को अवश्य पढना चाहिए | मैं यकीन से कह सकता हूँ आप पहली बार कुछ नया देखेंगे |
ओशो का शुरुआती जीवन
11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में उनका जन्म हुआ था. जन्म के वक्त उनका नाम चंद्रमोहन जैन था. बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि पैदा हो गई.
ऐसा उन्होंने अपनी किताब 'ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड' में लिखा है.
उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वो जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे.
उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया.
प्रवचन के साथ ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया. शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था.
नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया.next post....
ओशो भारत के सबसे अधिक रहस्यमयी अध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक रहे है बहुत से लोग है जो उनसे सहमत नहीं है लेकिन उनसे अधिक तादात में वो है जो इनसे सहमत है क्योंकि जाहिर सी बात है किसी भी इन्सान को पढ़े बिना या सुनी सुनाई बातों को आधार मानकर उसके विचारो से सहमत या असहमत होना पूर्ण रूप से मूर्खता है और जो लोग ओशो से सहमत नहीं है वो ये तर्क देते है कि ओशो ने sex पर अपने खुले विचार रखकर जो सोच लोगो में कायम करने की कोशिश की वो संस्कृति विनाशक है जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि मेरे ख्याल से जब एक व्यस्क इन्सान sex के बारे में दिनभर सोच सकता है तो उस पर बात करने में क्या हर्ज़ है और न ही कोई बुराई है |
ओशो की बहुत सी अन्य पुस्तके है जो sex विषय से हटकर है और आप उनके पढ़कर जिन्दगी के बारे में कंही बेहतर नजरिया हासिल कर सकते है | वैसे आपको बता दू ओशो की सबसे विवादित पुस्तक जो है वो है “सम्भोग से समाधी की ओर” और जो इन्सान ओशो के बारे में पूर्वाग्रह लिए है उसे कम से कम एक बार इस पुस्तक को अवश्य पढना चाहिए | मैं यकीन से कह सकता हूँ आप पहली बार कुछ नया देखेंगे |
ओशो का शुरुआती जीवन
11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में उनका जन्म हुआ था. जन्म के वक्त उनका नाम चंद्रमोहन जैन था. बचपन से ही उन्हें दर्शन में रुचि पैदा हो गई.
ऐसा उन्होंने अपनी किताब 'ग्लिप्सेंस ऑफड माई गोल्डन चाइल्डहुड' में लिखा है.
उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वो जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे.
उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया.
प्रवचन के साथ ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू कर दिया. शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था.
नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया.next post....
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