स्कूल ले जाती,तो वह नखरे करता। स्कूल मै भी पढ़ता कम और शरारतें करता ज्यादा।
एक दिन स्कूल से रोकते हुए वह सड़क पर खेल रहे बच्चों को देखकर मां से बोला, 'आप मुझे स्कूल क्यों भेजती है ?ये बच्चे भी तो बिना स्कुल गए ही बड़े हो रहे हैं।' देखिए ये कितने खुब हैं।' मां चुपचाप सुनती रही। दूसरे दिन उसने बिलहेम को घर के बहार उग आए झाड़- झंखाड़ की ओर दिखाते हुए पुछा, 'बताओ बेटा, इन्हें किसने उगाया हैं ?' विल्हेम बोला, ' मां, ये तो खुद ही उग आते हैं और ओस, बारिश का पानी और सुरज की गर्मी पाकर बढ़ जाते हैं ।' फिर मां ने घर में लगे गुलाब के पौधों को दिखाते हुए पूछा, ' और अब बताओ, ये फूल कैसे लग रहे हैं ?' बिलहेम ने जवाब दिया, मां ये तो बहुत ही सुन्दर लग रहे हैं। इन्हें तो पिताजी रोज तराशते हैं और नियम से खाद-बीज पानी भी देते हैं।' मां बिलहेम से यही सुनना चहाती थी। उसने तपाक से कहा, 'बिल्कुल ठीक। ये फूल इसलिए ज्यादा सुंदर है। क्योंकि इन्हें प्रयास करके ऐसा बनाया गया है। जीवन भी ऐसा ही है। हमें अच्छा जीवन प्रयासों से ही मिलता है। इसके लिए अच्छी शिक्षा, बेहतर प्रशिक्षण और परिश्रम की जरूरत पड़ती हैं। तुममे और उन बच्चों में क्या फर्क है। यह तुम्हे आगे चलकर पता चलेगा।' मां की यह सीख विल्हेम ने गांठ बांध ली। आगे चलकर इन्हीं बिलहेम ने एक्स - रेटेड की खोज की और भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी।
धन्यवाद।
संदीप कुमार।
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