एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्यों को एक अजीब कार्य सौंपा । उन्होंने अपने सारे शिष्यों को बुलाया और सभी लोगों को अपने- अपने घर से थोड़ा चावल चुरा कर लाने को कहा। लेकिन शर्त यह थी कि चोरी करते हुए उन्हें कोई देख ना पाए। एकबारगी तो शिष्यों को यह सुनकर अटपटा लगा, लेकिन अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना उन्होंने अपना धर्म समझा। कई दिनों की कोशिश के बाद सभी शिष्य अपनी पोटलियों में थोड़ा- थोड़ा चावल लेकर वापस आश्रम में आए । सभी शिष्यों के चेहरे पर एक संतोष का भाव था कि उन्होंने अपने गुरु द्वारा सौंपे गए कार्य को पूरा किया। लेकिन सिर्फ एक शिष्य था जो खाली हाथ लौट था। स्वामी परमहंस को जब पता चला तो उन्होंने उस शिष्य से खाली हाथ लौटने की वजह पूछी। शिष्य ने बड़ी विनम्रता से कहा, गुरु जी, मेंने सभी से छिपकर चोरी करने की कोशिश बार कोशिश की, लेकिन हर बार मैंने स्वय को वहां मौजूद पाया। इसलिए, कभी ऐसा अवसर ही नहीं आया, जब मुझे कोई देख न रहा हो।॑ गुरु जी ने अपने छात्रों की और संतुष्ट भाव से देखा और चावल लेकर आए अपने शिष्यों को समझाते हुए बोले, जब भी कभी हम कोई ग़लत काम करते हैं तो दुनिया से भले छिपा ले,मगर अपने आप से नहीं छिपा सकते। इसलिए मेरे शिष्यों,कोई अनैतिक कार्य करने से पहले हमेशा याद रखना कि तुम्हें कोई देख रहा है।'
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Thursday, 30 August 2018
कोई देख रहा है लोक कथा
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